भारतीय महिलाएं जिंदगी के सभी क्षेत्रों में सक्रिय हैं। चाहे वह राजनीति का क्षेत्र हो या फिर शिक्षा, कला-संस्कृति अथवा आइटी या फिर मीडिया का क्षेत्र, सभी क्षेत्रों में महिलाओं ने सफलता के झंडे गाड़े हैं। ऐसा सिर्फ कलयुग ही नहीं त्रेता, द्वापर व सतयुग में भी रहा, जहां महिलाएं कभी मां दुर्गा, तो कभी काली बनकर विघटनकारी शक्तियों को परास्त कर धर्म एवं सामाजिक मूल्यों की स्थापना की है। शायद यही वजह भी है कि उन्हें देवी की तरह पूजा जाता है। आज भी महिलाओं को घर की लक्ष्मी कहा जाता है। इसके बावजूद अगर महिलाओ को कुछ मंदिरों में पूजा करने की मनाही है। कार्यस्थलों पर उनके साथ भेदभाव किया जाता है, तो अब इसे असामाजिक नहीं तो और क्या कहेंगे। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने ऐतिहासिक फैसला देते हुए मंदिर में  महिलाओं को जाने की इजाजत देकर सालों साल की पाबंदी खत्म कर महिलाओं का गौरव बढ़ाया है।
सुरेश गांधी
सुप्रीम कोर्ट ने सबरीमाला मंदिर में महिलाओं के प्रवेश पर लगी पाबंदी को खत्म कर दिया है। माना जा रहा है कि इस कानून के तहत अब देशभर के मंदिरों में महिलाओं के प्रवेश लगी पाबंदी खत्म हो जायेगी। सीजेआइ दीपक मिश्रा के बयान में दम है। क्योंकि जब धर्म एक है, गरिमा और पहचान भी एक हैं, तो फिर कैसा भेदभाव। वैसे भी महिलाओं को भी पूजा का समान अधिकार, यह मौलिक अधिकार है। पूजा से इनकार करना महिलाओं की गरिमा से इनकार करना है। इसलिए कोर्ट द्वारा दिया गया ऐतिहासिक फैसला है, जिसमें महिलाओं की बड़ी जीत हुई है। महिलाओं को आज समानता का अधिकार हासिल हुआ है। ’’आज संविधान की जीत हुई है। महाराष्ट्र के शनि शिंगणापुर मंदिर में प्रवेश की इजाजत नहीं मिलना हो या सबरीमाला मंदिर का मामला हो यह एक खराब मानसिकता है। लेकिन कोर्ट ने फैसला दिया है यह बड़ी जीत है। मानसिकता बदलने की जरूरत है। यह समानता के अधिकार से जुड़ा मामला है।’’

मंदिर प्रशासन की दलील थी कि मंदिर में विराजमान भगवान अयप्पा ब्रह्मचारी माना जाता है। सबरीमाला की यात्रा से पहले 41 दिन तक कठोर व्रत का नियम है। मासिक धर्म के चलते युवा महिलाएं लगातार 41 दिन का व्रत नहीं कर सकती हैं। इसलिए, 10 से 50 साल की महिलाओं को मंदिर में आने की इजाज़त नहीं है। इसलिए, ऐसा नियम बनाया गया है। ये महिलाओं के साथ भेदभाव का मामला नहीं है। लेकिन कोर्ट ने कहा, ’’महिलाएं दिव्यता और अध्यात्म की खोज में बराबर की हिस्सेदार हैं। बनी बनाई मान्यताएं इसके आड़े नहीं आनी चाहिए। समाज को भी सोच में बदलाव लाना होगा, महिलाएं पुरुषों के समान हैं।’’ ’’पितृसत्तात्मक सोच आध्यात्मिक मामलों में आड़े नहीं आनी चाहिए। हर धर्म ईश्वर तक पहुंचने का जरिया है। कुछ लोगों को किसी धार्मिक प्रक्रिया से बाहर रखना सही नहीं है। अयप्पा के अनुयायी अलग धार्मिक मत नहीं है ये हिन्दू धर्म का ही हिस्सा है।’’ ’’धर्म के पालन का मौलिक अधिकार पुरुष और महिला को एक समान उपलब्ध हैं। अनुच्छेद में दी गयी नैतिकता की शर्त इस मामले में आड़े नहीं आती है।’’
दरअसल, महिलाओं के खिलाफ जारी इन परंपराओं के पीछे लोगों की गलत मानसिकता जिम्मेदार है। इस मानसिकता में बदलाव होना चाहिए। बता दें, केरल के सबरीमाला मंदिर में 10 साल से 50 साल की उम्र की महिलाओं का प्रवेश वर्जित था। खासकर 15 साल से ऊपर की लड़कियां और महिलाएं इस मंदिर में नहीं जा सकती थीं। इसके पीछे मान्यता है कि भगवान अयप्पा ब्रह्मचारी थे। ऐसे में युवा और किशोरी महिलाओं को मंदिर में जाने की इजाजत नहीं है। सबरीमाला मंदिर में हर साल नवम्बर से जनवरी तक, श्रद्धालु अयप्पा भगवान के दर्शन के लिए जाते हैं, बाकि पूरे साल यह मंदिर आम भक्तों के लिए बंद रहता है। भगवान अयप्पा के भक्तों के लिए मकर संक्रांति का दिन बहुत खास होता है, इसीलिए उस दिन यहां सबसे ज़्यादा भक्त पहुंचते हैं। पौराणिक कथाओं के अनुसार अयप्पा को भगवान शिव और मोहिनी (विष्णु जी का एक रूप) का पुत्र माना जाता है। इनका एक नाम हरिहरपुत्र भी है। हरि यानी विष्णु और हर यानी शिव, इन्हीं दोनों भगवानों के नाम पर हरिहरपुत्र नाम पड़ा। इनके अलावा भगवान अयप्पा को अयप्पन, शास्ता, मणिकांता नाम से भी जाना जाता है। इनके दक्षिण भारत में कई मंदिर हैं उन्हीं में से एक प्रमुख मंदिर है सबरीमाला। इसे दक्षिण का तीर्थस्थल भी कहा जाता है।

केरल के पेरियार टाइगर रिजर्व में 18 पहाड़ियों से घिरा यह एक खूबसूरत मंदिर है। ऐसी मान्यता है कि इस मंदिर की स्थापना भगवान परशुराम ने की थी। ऐसा माना जाता था कि देव अयप्पा पहाड़ी जंगल के बीच स्थति सबरीमाला मंदिर में ’नैष्ठिक ब्रह्मचर्य’ (निष्ठावान ब्रह्माचारी) अवस्था में विराजमान हैं। इस मंदिर में अभी तक रजस्वला की उम्र (10 से 50 साल) तक की औरतों को प्रवेश करने की इजाजत नहीं थी। इसके बारे में कई तरह की कहानियां प्रचलित हैं। पुराणों और जनश्रुतियों से निकली कहानियों के अनुसार, देव अयप्पा का जन्म भगवान शिव और भगवान विष्णु के संयोग से हुआ था। असल में एक खतरनाक राक्षस भष्मासुर के वध के लिए भगवान विष्णु ने मोहिनी का वेश रचा था। भष्मासुर देवताओं से वह अमृत छीनना चाहता था जो समुद्र मंथन से निकला था। भगवान शिव भी विष्णु के इस मोहिनी रूप से मोहित हो गए और दोनों के संयोग से देव अयप्पा का जन्म हुआ। देव अयप्पा जब छोटे थे, तभी दक्षणि भारत के इलाके में एक राक्षसी का आतंक मचा हुआ था। उसे यह वरदान मिला था कि उसे हार सिर्फ भगवान शिव और विष्णु के संयोग से पैदा संतान से ही हो सकती है। तो इस तरह दोनों के बीच लड़ाई हुई और देव अयप्पा ने उस राक्षसी पर विजय हासिल की। लेकिन हार के बाद यह खुलासा हुआ कि वह राक्षसी वास्तव में एक सुंदर युवा महिला थी, जो किसी श्राप की वजह से राक्षसी बन गई थी। इस हार के बाद राक्षसी को इस अभिशाप से मुक्ति मिल गई। महिला देव अयप्पा से बहुत प्रभावित हुई और उसे उनसे प्यार हो गया। उसके प्रेम प्रस्ताव को खारिज करते हुए देव अयप्पा ने कहा कि उन्हें वन में जाकर भक्तों की प्रार्थना सुनने का आदेश मिला है। लेकिन युवती अपनी जिद पर अड़ी रही।
आखिरकार देव अयप्पा ने उससे यह वादा किया कि जिस दिन कन्नी-स्वामी (नए भक्त) सबरीमाला में उनके सामने आकर प्रार्थना करना बंद कर देंगे, उस दिन वे उस युवती से शादी कर लेंगे। युवती इस बात पर राजी हो गई और पास के एक मंदिर में बैठकर इंतजार करने लगी। आज उस महिला की भी पूजा की जाती है और पास के मंदिर में वह देवी मलिकपुरथम्मा के रूप में स्थापित हैं। देवी मलिकपुरथम्मा के सम्मान करने की वजह से ही देव अयप्पा किसी रजस्वला स्त्री (ऐसी स्त्री जिसके पीरियड आते हों) का अपने यहां स्वागत नहीं करते। इस मान्यता का सम्मान करते हुए ज्यादातर औरतें खुद ही देव अयप्पा के मंदिर में नहीं जाती थीं ताकि देवी मलिकपुरथम्मा के प्यार और बलिदान का अपमान न हो। एक अन्य कथा के मुताबिक देव अयप्पा का उल्लेख इतिहास में है। उनका जन्म केरल के पट्थनमथिट्टा जिले में स्थति एक छोटे-से राजघराने पंथलम के यहां हुआ था। इसी जिले में सबरीमाला मंदिर स्थित है। अयप्पा बाद में एक ऐसे जनप्रिय राजकुमार बने जो अपने राज्य की प्रजा का काफी ध्यान रखते थे। कथा के मुताबिक अरब कमांडर वावर के नेतृत्व में कुछ लुटेरों ने राज्य पर हमला कर दिया। अयप्पा ने वावर को हराया और इसके बाद उनकी लोकप्रियता इतनी बढ़ गई कि उनके भक्त उनकी पूजा करने लगे। सबरीमाला मंदिर से 40 किमी दूर एरुमली में वावर का मकबरा स्थति है। कहा जाता है जो भक्त देव अयप्पा के दर्शन को जाते हैं वावर उनकी रक्षा करते हैं। कथा के अनुसार देव अयप्पा उन सभी की प्रार्थना जरूरत सुनते हैं जो 40 किमी दूर वावर के मकबरे तक भी जाते हैं। ऐसा माना जाता है कि अपने ऊपर मिली कठोर जिम्मेदारी की वजह से देव अयप्पा ने सारी सांसारिक इच्छाओं का त्याग कर दिया था। कई लोगों का मानना है कि शायद इसकी वजह ही रजस्वला स्त्रियों के सबरीमाला मंदिर में जाने पर रोक लगाई गई।